महात्मा गांधी की दृष्टि में स्वच्छता

 

डा. डिश्वर नाथ खुटे

सहायक प्राध्यापक, इतिहास अध्ययनशाला,पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय,रायपुर .

सारांश-

महात्मा गांधी बचपन सें ही स्वच्छता के प्रति जागरूक थे। उन्होंने किसी भी सभ्य और विकसित मानव समाज के लिए स्वच्छता के उच्च मानदंड की आवश्यकता को समझा। उनके लिए स्वच्छता एक बहुत महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दा था। उन्होंने स्कूली और उच्च शिक्षा के पाठयक्रमों में स्वच्छता को तुरंत शामिल करने की आवश्यकता पर जोर दिया था। 20 मार्च 1916 को गुरूकुल कांगड़ी में दिए गए भाषण में उन्होने कहा था-गुरूकुल के बच्चों के लिए स्वच्छता और सफाई के नियमों के ज्ञान के साथ ही उनका पालन करना भी प्रशिक्षण का एक अभिन्न हिस्सा होना चाहिए। 1920 में गांधीजी ने गुजरात विद्यापीठ की स्थापना की। यह विद्यापीठ आश्रम की जीवन पद्धति पर आधारित था। इसलिए वहां शिक्षकों, छात्रों और अन्य स्वयं सेवकों एवं कार्यकर्ताओ को प्रारंभ से ही स्वच्छता के कार्य में लगाया जाता था। जब वह दक्षिण अफ्रीका से लौटे तो बाल गंगाधर तिलक से मिलने पुणे गए, उन्हे जहां ठहराया गया, उस घर में शौचालय की जब उन्होंने खुद ही सफाई की तो लोग दंग रह गए। इसके बाद कोलकाता में शंाति निकेतन  में भी उन्होंने केवल ऐसा फिर किया बल्कि वहां के छात्रों को भी पे्ररित किया। कांग्रेस के करीब-करीब हर सम्मेलन में दिए अपने भाषण में गंाधीजी स्वच्छता के मामले उठाते थे। अप्रेल 1924 में उन्होने दाहोद शहर के कांग्रेस सदस्यो को अच्छी साफ सफाई रखने के लिए बधाई दी और सुझाव दिया कि वह अछूत समझे जाने वाले समुदाय के इलाकों मे जाकर स्वच्छता के प्रति जागरूकता फैलाएं। गंाधीजी मानते थे कि नगरपालिका एवं पंचायतो की भूमिका इस कार्य मे महत्वपूर्ण होगी। उन्होने गांव और शहर में रहने वाले सभी लोगों को प्राथमिक शिक्षा के लिए, घर-घर चरखा पहुंचाने के लिए, संगठित रूप से साफ सफाई के लिए पंचायत और नगरपालिका जिम्मेदार होनी चाहिए। 21 दिसंबर 1924 को बेलगांव में उन्होंने कहा था कि-हमंे पश्चिम मे नगरपालिकाओं द्वारा की जाने वाली सफाई व्यवस्था से सीख लेनी चाहिए, पश्चिमी देशांे ने स्वच्छता और सफाई विज्ञान को किस तरह विकसित किया है उससे हमें काफी कुछ सीखना चाहिए, पीने के पानी के स्त्रोतो की उपेक्षा जैसे अपराध को रोकना होगा। गांधीजी की नजर में आजादी से भी महत्वपूर्ण सफाई थी

शब्दकुंजी -  ग्रंथालय, उपयोगकर्ता शिक्षण

 

मोहनदास करमचंद गांधी ने बचपन में ही भारतीयों मे स्वच्छता के प्रति उदासीनता की कमी को महसूस कर लिया था। उन्होने किसी भी सभ्य और विकसित मानव समाज के लिए स्वच्छता के उच्च मानदंड की आवश्यकता को समझा। उनमे यह समझ पश्चिमी समाज में उनके पारंपरिक मेलजोल और अनुभव से भी विकसित हुई। अपने दक्षिण अफ्रीका के दिनों से लेकर भारत तक वह अपने पूरे जीवन काल में निरंतर बिना थके स्वच्छता के प्रति लोगो को जागरूक करते रहे। गांधीजी के लिए स्वच्छता एक बहुत महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दा था। गांधीजी ने स्कूली और उच्च शिक्षा के पाठयक्रमों में स्वच्छता को तुरंत शामिल करने की आवश्यकता पर जोर दिया था। महात्मा गांधी जब 1915 में दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे थे तो उन्होंने आजाद भारत के साथ एक सपना देखा था। ये सपना स्वच्छ भारत का था। मध्य महाराश्ट्र के एक नवयुवक ने गांधीजी का आर्शीवाद लेने के लिए उनके सेवाग्राम आश्रम में जाकर उनसे भेंट की। उस नवयुवक ने आईसीएस की प्रारंभिक परीक्षा पास की थी। गांधीजी ने उस नवयुवक से पूछा, ‘‘तुम आईसीएस क्यों बनना चाहते हो? नवयुवक ने उत्तर दिया, ‘‘भारत की सेवा करने के लिए‘’ गांधीजी ने उसे सलाह दी, ‘‘गांव में जाना और साफ-सफाई करना भारत की सबसे उत्कृष्ट सेवा है। और इसके बाद आईसीएस बनने के इच्छुक अप्पा पटवर्धनसफाईकी कला में विशेषज्ञता हासिल कर देश के बेहतरीन स्वाधीनता सेनानियों में शुमार हो गए।

 

स्वाधीनता संग्राम के विद्यालय मेंसफाईऔरस्वच्छताआगे बढ़ने की परीक्षा थे। विनोबा भावे, टक्कर बाबा, जे.सी. कुमारप्पा और बेहद प्रतिभाशाली असंख्य नौजवान स्वाधीनता संग्राम में कूद पड़े और उन्होंने सफाई एवं स्वच्छता को स्वाधीनता की बुनियाद मान लिया।

सत्य के अन्वेषक के रूप में, गांधीजी ने बहुत सतर्क जीवनशैली अपनाई और स्वच्छता को सर्वोच्च प्राथमिकता प्रदान की। राष्ट्रपिता होने के नाते, उन्होंने महसूस किया कि सफाई का राष्ट्र निर्माण में अपरिहार्य स्थान है और कहा, ‘स्वच्छता का स्थान ईश्वर के करीब है

विकास पहली आवश्यकता:-

विकास मानव सभ्यता का वफादार साथी रहा हैं। प्रागैतिहासिक आदिमानव से लेकर अत्याधुनिक शहरी मानव तक, हमने जीवन को काफी हद तक तात्कालिक बनाया हैं। विकास को उन्नति के रूप में देखा गया है, जो नवाचार जीवन से किसी भी पहलू में लाता है। मानव विकास का दृष्टिकोण वैयक्तिक कल्याण के समस्त पहलुओं को समाहित किए हुए है-1 खाद्य सुरक्षा, स्वच्छ एवं ताजा हवा, सुरक्षित पेयजल, स्वास्थ्य एवं सफाई, साधन तक पहंुच, इन सभी की निश्चितता के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा एवं चयन की आजादी।

इनमें से विकास के अधिकांश घटकों को दैहिक आवश्यकताओं की पूर्ति करने वालों के रूप में श्रेणीबद्ध किया जा सकता है, जैसा कि अब्राहम मैसलाॅ ने कहा हैं विकासशील समुदाय होने के नाते, हमने ऐसी व्यवस्थाएं तैयार करने में काफी मशक्कत की है, जिससे हमने शारीरिक आवश्यकता के एक पक्ष, आपूर्ति पक्ष का ध्यान रखा है। दूसरे पक्ष, निपटान को सरासर नजरंदाज किया हैं। निपटान विरले ही कभी विकास के एजेंडे की योजना में होता हैं।

 

जैसा कि एक कहावत में कहा गया है, ‘अच्छी शुरूआत आधी सफलता है।दूसरे हिस्से के बारे में कहावत में आगे कहा गया हैंयह महत्वपूर्ण नहीं है कि आप शुरूआत कैसे करते हैं, बल्कि महत्वपूर्ण यह है कि समापन कैसे करते हैं।

मानवजाति जो पाक कला, विकास के उपकरण बनाने में माहिर है, उसे उसके गौण उत्पादों को निपटाने में भी महारत हासिल होनी चाहिए। दुखद बात यह है कि चाहे मानव मल हो, औद्योगिक कचरा, उपभोक्ता वस्तुओं संबंधी कूड़ा-करकट हो या विकास संबंधी कबाड़, मानवजाति ने अनिच्छापूर्वक ध्यान के अलावा सब कुछ देना जारी रखा हैं।

 

निष्क्रियता:-

इसके परिणामस्वरूप हमारे रेलवे स्टेशन, बस अड्डे, बाजार, और तो और मंदिरों के परिसर तक मक्खियों, मच्छरों और चूहों से भरपूर जंक यार्ड जैसे दिखते हैं। गांधीजी ने इन्हेंबदबूदार मांद2 करार दिया था। हमने तो पवित्र गंगा को भी विशाल सीवर में परिवर्तित कर डाला हैं।

 

सार्वजनिक स्वच्छता के प्रति शहर के लोगों के बेरूखी भरे रवैये पर टिप्पणी करते हुए गांधीजी ने कहा था, ‘‘यह सोच सुविधाजनक नहीं है कि लोग भारतीय बम्बई की सड़कों पर निरंतर इस खौफ के साये में चलते हैं कि बहुमंजिली इमारतों के बाशिंदे उन पर थूक सकते हैं।‘‘3 वे खुले में शौच करने कोअसभ्यताके समान मानते थे, जिसके कारण अगर कोई ऐसे समय में गुजर रहा होता है, तो हम नजरें फेर लेते हैं।

 

सत्य की अनुभूतिः-

गांधीजी के लिए, स्वच्छता सिर्फ एक जैविक आवश्यकता भर नहीं, बल्कि जीवनशैली, सत्य की अनुभूति का अभिन्न अंग थी। साफ-सफाई की उनकी समझ सत्य की सार्वभौमिक एकात्मकता के एहसास से उपजी थी। गांधीजी जिन्होंने सत्य की ईश्वर के समान स्तुति की, उन्होंने पूर्ण, सर्वव्यापी सत्य को ऐसा शुद्ध पाया और इसलिएस्वच्छता की बराबरी ईश्वरसे कर डाली। उन्होंनेस्वच्छताको रचनात्मक कार्यक्रम4 की सूची में शामिल करते हुए उसे स्वाधीनता के अनिवार्य कदम का दर्जा दिया।

 

सत्य के इस अन्वेषक ने जीवन को सत्य की करीबी अभिव्यक्ति के रूप में देखा, इसलिए उन्होंने जीवन की सत्य अथवा ईश्वर के साथ बराबरी की। वे सभी प्रक्रियाएं जो जीवन और उसके आचरण का अंग है, वे सत्य की अनुभूति का अंग भी हैं। इस अर्थ में, गांधीजी का मानना था कि आंतरिक और बाहरी साफ-सफाई, स्वच्छता ईश्वर की अनुभूति के साधन हैं। ‘‘मैले शरीर और उस पर अशुद्ध मस्तिष्क के साथ हम ईश्वर का आशीर्वाद नहीं पा सकते। स्वच्छ शरीर किसी गंदे शहर में वास नहीं कर सकता।‘‘5 

स्वराजः-

भारत की आजादी के बारे में गांधीजी के समग्र दृष्टिकोण ने उन्हें स्वराज प्राप्ति की भारत की कोशिशों में स्वच्छता के अनोखे स्थान का बोध कराया। इंडियन होमरूल के अधिकार की मांग करते हुए बाल गंगाधर तिलक ने हुंकार भरी, ‘‘स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार हैं।‘‘ गांधीजी के लिए स्वराज शब्द का निहितार्थ काफी गूढ़ था। उन्होंने यंग इंडिया में लिखा, ‘‘स्वराज एक पवित्र शब्द है, वैदिक शब्द है, जिसका आशय स्वशासन, आत्मसंयम है और समस्त प्रकार के नियंत्रण से मुक्ति नहीं हैं, जो अक्सरस्वतंत्रताका आशय होता हैं।‘‘6 ‘मेरे सपनों का स्वराज गरीब आदमी का स्वराज हैं।

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के उद्घाटन के अवसर पर विशाल जनसमूह को सम्बोधित करते हुए उन्होंने उस गंदगी का उल्लेख किया जिसने इस पवित्र शहर को ढक रखा है। ‘‘कोई भी भाषण हमें स्वशासन (स्वतंत्रता) के लिए उपयुक्त नहीं बना सकता। सिर्फ हमारा आचरण है, जो हमें इसके उपयुक्त बनाता हैं।7 स्वच्छता उनके लिएस्वराज्य योजनाथी।

यहआत्मसंयमउन्होंने निजी और सर्वाजनिक जीवन के व्यक्तिगत आचरण, जीवन के दैहिक और चिंतन दोनों पहलुओं में उत्पन्न किया। निपटान की व्यवस्था का जिक्र करते हुए गांधीजी ने कहा, ‘‘स्वराज तब तक पूर्ण स्वराज नहीं होगा, जब तक प्रत्येक मनुष्य को जीवन की समस्त साधारण सुख-सुविधाओं की गारंटी नहीं मिलती।8

सफाई राष्ट्र निर्माण का कार्यः-  

स्वाधीनता संग्राम का नेतृत्व करते हुए उन्होंने स्वाधीनता के पहलुओं की व्याख्या की औरस्वच्छ आचरणके महत्व पर प्रकाश डाला। इस संदर्भ में उन्होंने कहा, ‘‘इससे पहले कि हम स्वशासन के बारे में सोचे, हमें कुद आवश्यक परिश्रम करना होगा।9

 

स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से गांधी ने गांवों की हालत को शोचनीय करार दिया। ‘‘हमारी गरीबी का एक प्रमुख कारण स्वच्छता की अनिवार्य जानकारी उपलब्ध होना है। यदि गांवों की साफ-सफाई में सुधार लाया जाए, तो लाखों रूपये आसानी से बचाए जा सकेंगे और लोगों की दशा में कुछ हद तक सुधार लाया जा सकेगा। बीमार किसान स्वस्थ किसान जितनी मेहनत नहीं कर सकता।‘‘10 इस आशय में उन्होंने कहा कि स्वराज सिर्फ‘‘ अंग्रेजी दासता मुक्ति नहीं....बल्कि समस्त प्रकार की दासता से मुक्ति है।11

 

एक अन्य अवसर पर उन्होंने कहा, ‘‘स्वराज अनवरत श्रम और पर्यावरण की बुद्धिमानी से परिपूर्ण सराहना का फल होगा‘‘12

 

सफाई महान आनंद का कार्य:-

गांधीजी ने अहिंसात्मक जीवन को ईश्वर की आराधना, सत्य के सबसे बेहतर साधन के रूप में देखा। उन्होंने जीवन की सेवा के प्रत्येक कार्य को ईश्वर के मार्ग के रूप में देखा। उन्होंने स्वच्छता को शुद्धता के कार्य के रूप में देखा और अपार आनंद प्राप्त किया।

 

गांधीजी के सचिव प्यारेलाल इस बारे में नोआखली का एक रोचक किस्सा सुनाते हैं, जहां गांधीजी हिंदुओं और मुसलमानों के बीच सद्भाव कायम करने के लिए उसके कोने-कोने में जा रहे थे। वे लिखते हैं,‘‘ यहां तक कि नोआखली के लिए भी वह ओस से से बेहद गीली रात थी और जिस संकरे फुटपाथ पर गांधीजी को चलना था उस पर बहुत फिसलन थी जब वे 19 जनवरी, 1947 को बादलकोट से अटाकरा रवाना हुए। मुश्किल कूच करने के आदी कर्नल जीवन सिंह दो बार संतुलन खो बैठे और लड़खड़ा गए। गांधीजी ने हंसते हुए उनकी ओर अपनी लाठी का दूसरा सिरा बढ़ाया, ताकि वे फिसलन भरी ढलान से उठ सकें

 

 

 

फुटपाथ बहुत संकरा था इसलिए उनके दल के लोग एक-एक करके ही आगे बढ़ सकते थे। अचानक इस टुकड़ी को रूकना पड़ा। गांधीजी कुछ सूखी पत्तियों की सहायता से फुटपाथ से मल हटा रहे थे। कुछ साम्प्रदायिक शरारती तत्वों ने फुटपाथ को फिर से गंदा कर दिया था। मनु ने पूछा, ‘‘आपने मुझे क्यों नहीं करने दिया? आपने हम सभी को इस तरह शर्मसार क्यों किया? गांधीजी ने हंसते हुए कहा,‘‘ तुम उस आनंद के बारे में नहीं जानती, जो ऐसे काम करके मुझे प्राप्त होता हैं।‘‘13

 

ग्राम राज्य:-

गांधीजी का मानना था कि समस्त प्राथमिक उपज, अन्न का केंद्र गांव, ‘‘भारत का हृदय है।‘‘ गांवों के जीवन में भारत का जीवन है। इसलिए उन्होंने हिंद-स्वराज-इंडियन होम रूल की बराबरीग्राम राज्यसे की। स्वतंत्र भारत के ग्रामों की कल्पना करते हुए गांधीजी ने कहा, ‘‘उस गांव को उन्नत माना जाएगा, जहां उसकी प्रत्येक जरूरत के उत्पादन के लिए हर प्रकार के ग्राम उद्योग हो, जहां कोई निरक्षर नहीं हो, जहां की सड़के साफ हो, जहां शौच के लिए निर्धारित स्थान हो और जहां के कुएं साफ हो।.....‘‘14

 

गांधीजी ने प्रस्ताव किया, ‘‘एक आदर्श भारतीय गांव का निर्माण इस रूप में किया जाएगा, कि वह अपने यहां पूरी तरह सफाई रख सके। उसके मकानों में पर्याप्त रोशनी और हवा होगी और उनका निर्माण पांच मील के दायरे में मिलने वाली सामग्री से किया जाएगा।15

 

स्वच्छता के मामले का जवाबः-

सफाई की तकलीफों के जवाब में उन्होंने पेशकश की, ‘‘प्रत्येक गांव में एक स्थान पर बेहद सस्ते शौचालय (फ्लश वाले टाॅयलेट) बनवाए जाने चाहिए।16 इस पूरे विषय (स्वच्छता) का अन्वेषण नहीं किया गया है, यह व्यवसाय, बेहद स्वच्छ है, यह शुद्ध है, जीवनरक्षक है। हम लोगों ने ही इसे तुच्छ बनाया है। हमें इसे इसके वास्तविक दर्जे तक उठाना होगा।

 

गांधीजी ने सत्याग्रह और रचनात्मक कार्यक्रम को एक ही सिक्के के दो पहलू करार दिया, एक के बिना दूसरे का कोई मतलब नहीं। गांधीजी ने रचनात्मक कार्यक्रम के बीच एक अटूट सम्पर्क कायम किया, जैसे स्वच्छता और स्वाधीनता संग्राम देशभर में जाहिर था। शौचालय की सफाई और‘‘ स्वच्छता का कार्य सत्याग्रही की योग्यता बन गए।‘‘ हरेक जनसभा में, चाहे ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ सत्याग्रह का आह्वान हो अथवा सामाजिक सुधार की पहल हो, बैठक मेंगांव की सफाईएक अपरिहार्य शुरूआत होती थी।

 

असंख्य संस्थानों ने गांधीजी के आह्वान हो स्वीकार किया औरसफाईअभियान शुरू किया। ऐसा ही एक संस्थान अहमदाबाद कासफाई विद्यालयथा, जिसने इसे निष्ठापूर्वक अपनाया जो उल्लेखनीय हैं।

 

मैला ढोने वालों के नाम से जाना जाने वाला एक भारतीय वर्ग पीढ़ियों से पुराने किस्म के बाॅस्केट टाइप (पानी रहित) शौचालयों से मल उठाने का काम करता रहा था और इसलिए उन्हें नीची निगाह से देख जाता था। गांधीजी इन लोगों की पीड़ा से बहुत चिंतित थे, क्योंकि उन्हें लगता था इन लोगों को समाज में बिल्कुल निम्न समझा जाता है, जबकि वे सामुदायिक सफाई और स्वास्थ्य के सबसे महत्वपूर्ण कार्यों को अंजाम दे रहे हैं।

 

गांधीजी की दृष्टि का अनुसरण करते हुए मैला ढोने वालों को इस तरह के कार्य से मुक्ति दिलाने के लिए हरिजन सेवक संघ ने 1963 में गुजरात के अहमदाबाद में साबरमती गांधीजी आश्रम में सफाई विद्यालय की स्थापना की।17 सफाई विद्यालय के प्राथमिक उद्देश्यों में: सफाईकर्मियों और मैला ढोने वालों का उत्थान, ग्रामीण एवं शहरी स्वास्थ्य एवं स्वच्छता में सुधार शामिल थे।

 

 

 

गांधीजी ने सत्य की ईश्वर और अहिंसा का शैली के रूप में उपासना की। यहजीवन जीने की शैली है। शैली और लक्ष्य के बीच गांधीजी का कहना था, क्योंकि पहले वाला मेरे नियंत्रण में है, इसलिए मैं व्यावहारिक रूप सेशैलीकोअंतसे ज्यादा महत्वपूर्ण मानता हूं। उन्होंने कहा, ‘अगर आपसाधनों का ध्यान रखेंगे, तो अंत का ध्यान स्वतः ही रखा जाएगा।इस मायने में, एक राष्ट्र के रूप में वैश्विक मंच पर गौरव की ओर बढ़ने वाले भारत को खुद को शुद्ध एवं स्वच्छ बनाने के तरीके आजमाने होंगे और आखिर मेंगौरवउसका अनुसरण करेगा। उन्होंने कहा, ‘‘बसंत का वैभव प्रत्येक वृक्ष में जाहिर होता हैं, और पूरी पृथ्वी यौवन की ताजगी से भर उठती हैं। जब स्वराज की भावना समाज में व्याप्त हो गई, तो हरेक वर्ग ऊर्जा से भर उठा‘‘18        

 

देश आजाद हो गया लेकिन गांधीजी का वो सपना अब तक सही मायनों मे पूरा नहीं हो सका। भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने देश को फिर से स्वच्छ और साफ-सुथरा करने का बीड़ा उठाया। उन्होंने महात्मा गांधी के जन्मदिन 2 अक्टूबर 2014 को स्वच्छ भारत मिशन की शुरूआत की। उनका इरादा अगले पांच सालों मे देश की तस्वीर स्वच्छ भारत में बदल देने की है।19

 

2 अक्टूबर के दिन स्वच्छता अभियान की शुरूआत उचित ही थी, क्योंकि गांधीजी स्वच्छता के सबसे बड़े पैरोकार थे। महात्मा गांधी स्वयं रोजाना सुबह 4 बजे उठकर अपने आश्रम की सफाई किया करते थे। वर्धा आश्रम में उन्होंने अपना शौचालय स्वयं बनाया था और उसे प्रतिदिन साफ करते थे। गांधीजी ने इसके साथ ही यह संदेश भी दिया था कि हर घर के लिए जरूरी है शौचालय। वह ख्ुाले में शौच के विरोधी थे। उनका मानना था कि इससे गंदगी और संक्रामक बीमारियां फैलती है।

 

महात्मा गांधी की 150 वीं जयंती वर्ष 2019 में है, तब तक भारत को निर्मल बनाने का लक्ष्य है। स्वच्छ भारत मिशन एक बहुत अच्छा अभियान है। इसकी शुरूआत प्राथमिक तौर पर हमारे अपने परिवेश की स्वच्छता से होती है। यानी हम जहां रहें, वहां और उसके आसपास सफाई रखें। लालकिले से प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने सफाई अभियान का आगाज करते हुए शपथ ली कि -स्वच्छता के प्रति सजग रहूंगा, हर वर्ष 100 घंटे यानी हर सप्ताह 2 घंटे श्रमदान करके स्वच्छता के लिए काम करूंगा। मैं गंदगी करूंगा, किसी और को करने दूंगा। सबसे पहले मैं स्वयं से, मेरे परिवार से, मेरे मुहल्ले से, मेरे गांव से और कार्यस्थल से इसकी शुरूआत करूंगा।20

 

 

 

सफाई के मामले में हम कई बेहद छोटे और विकासशील देशों से सीख ले सकते हैं। थाईलैण्ड हमारे देश की तुलना में गरीब है लेकिन साफ-सुथरा देश है। वहां के सार्वजनिक स्थल साफ-सुथरे हैं। सार्वजनिक शैाचालय अधिक स्वच्छ और बेदाग है। वह ज्यादातर यूरोपीय देशों से भी बेहतर स्थिति में है। बैंकाॅक की गलियांे का दिल्ली, मुम्बई या देश के दूसरे शहरों की गलियो से कोई मुकाबला नहीं। ज्यादातर भारतीयांे के पास मोबाइल फोन तो है लेकिन घर में शौचालय नहीं है। यहां लोगों की स्वच्छता के प्रति जागरूकता की कमी को दिखाता है।21

 

वर्ष 2012 तक हमारे देश के 11 करोड़ ग्रामीण परिवारों के पास शौचालय नहीं थे। स्वच्छ भारत मिशन अभियान के शुरू होने के बाद करीब 79 लाख शौचालय केंद्र सरकार द्वारा बनवाए गए। हर शैाचालय पर सरकार द्वारा 12 हजार रूपये की प्रोत्साहन राशि दी जा रही है। वर्ष 2019 तक 6.84 करोड़ नए शौचालय बनवाने का लक्ष्य हैं।22

 

निष्कर्ष:-

स्वच्छता हमारे दैनिक जीवन की एक अतिआवश्यक कार्य है। यह कार्य हम अपने आसपास के स्थलों, कार्यालयों, घर एवं अन्य सार्वजनिक स्थानों पर साफ-सफाई के माध्यम से कर सकते हैं। इसके साथ ही हम पर्यावरण को साफ, स्वच्छ और सुरक्षित रखने की दिशा में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निर्वहन कर सकते हैं तथा विश्व को एक सकारात्मक सोच का संदेश दे सकते हैं। भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने महात्मा गांधी के जन्मदिन 2 अक्टूबर 2014 को स्वच्छ भारत मिशन की शुरूआत की। उनका इरादा अगले पांच साल यानि 2019 तक देश की तस्वीर स्वच्छ भारत में बदल देने की है, यह एक अच्छी पहल है। आइये हम सभी इस अभियान में जुड़कर महात्मा गांधी के स्वच्छता के सपना को पूरा करने का प्रयास करें तथा भारत को स्वच्छ बनाएं। इससे भारत स्वच्छ होगा और भारत की सुन्दरता बढ़ेगी एवं यहां आने वाले विदेशी पर्यटक अपने देश में जाकर भारत की स्वच्छता का गुणगान करेगा और परिणामस्वरूप भारत विश्व में एक नये रूप में पहचाना जायेगा।

 

संदर्भ गंथ सूचीः-

1.            बियोंड इकोनामिक ग्रोथ: मीटिंग चैलेंजिस आफ ग्लोबल डेवलेपमेंटबुक आन लाइन, अक्टूबर 06, 2004, पेज 04

2.            सीडब्ल्यूएमजी, खंड 13, पेज 213

3.            कुरूक्षेत्र, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, नई दिल्ली, अक्टूबर 2015, पृ. 43.

4.            कंस्ट्रक्टिव प्रोग्राम: इट्स मीनिंग एंड प्लेस, नवजीवन, अहमदाबाद, 1941

5.            यंग इंडिया, 19-11-1925

6.            यंग इंडिया, 19-03-1931, पेज 38

7.            आईबिड पेज, 212

8.            यंग इंडिया, 26-03-1931, पेज 46

9.            कुरूक्षेत्र, पूर्वांक्त पृ. वही

10.         शिक्षण अणे साहित्य, 18-08-1929, 41295

11.         यंग इंडिया, 12-06-1924, पेज 195

12.         यंग इंडिया, 05-01-1922, और यंग इंडिया, 27-08-1925, पेज 297,

13.         प्यारेलाल- लाॅस्ट फेज

14.         लैटर टू मुन्नालाल शाह, 4-4-1941, 73421

15.         हरिजन 18-08-1940

16.         हरिजन 05-12-1936 64105

17.         कुरूक्षेत्र, सूचना और प्रसारण मंत्रालय, नई दिल्ली, अक्टूबर 2015, पृ. 44

18.         हरिजन 18-01-1924 पेज 4

19.         कुरूक्षेत्र, पूर्वोक्त पृ.

20.         कुरूक्षेत्र, पूर्वोक्त पृ. वही, पृ. 38-39

21.         कुरूक्षेत्र, पूर्वोक्त पृ. वही, पृ. वही

22.         कुरूक्षेत्र, पूर्वोक्त पृ. वही, पृ. 39

 

 

Received on 15.01.2018       Modified on 20.03.2018

Accepted on 24.04.2018      © A&V Publication all right reserved

Int. J. Ad. Social Sciences. 2018; 6(3): 160-165.